सिंधु घाटी सभ्यता: इतिहास, प्रमुख स्थल और महत्वपूर्ण खोजें | Indus Valley Civilization: History, Major Sites and Important Discoveries

Sindhu ghati sabhyata
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सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास क्या था?

सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, विश्व की सबसे प्राचीन और उन्नत सभ्यताओं में से एक थी। यह सभ्यता लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व के बीच फली-फूली और मुख्य रूप से सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे विकसित हुई। इस सभ्यता के लोग उच्च स्तर की नगरीय योजना के लिए प्रसिद्ध थे। यहाँ के शहर सुव्यवस्थित होते थे, जिनमें पक्की ईंटों से बने घर, साफ-सुथरी सड़कें, और उत्कृष्ट जल निकासी प्रणाली थी। इसके अलावा, यह सभ्यता व्यापार, कृषि, और शिल्पकला में भी अत्यधिक उन्नत थी। उनके द्वारा बनाए गए मोहरे (seals) और मूर्तियाँ कला और संस्कृति की समृद्धि को दर्शाती हैं।

हड़प्पा की खोज कब और किसने की थी?

हड़प्पा की खोज 1921 में भारतीय पुरातत्त्ववेत्ता दयाराम साहनी ने की थी। यह स्थल वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है। हड़प्पा सभ्यता का नाम इसी स्थल के आधार पर पड़ा। हड़प्पा स्थल की खोज से यह स्पष्ट हुआ कि इस सभ्यता में उन्नत नगर व्यवस्था और एक समृद्ध संस्कृति थी। दयाराम साहनी ने यहाँ पर पहली बार खुदाई के दौरान पक्की ईंटों के मकान, मिट्टी के बर्तन, और अनेक मोहरें पाई थीं, जो इस सभ्यता के विकसित और संगठित होने का प्रमाण हैं।

सिंधु घाटी सभ्यता कब से कब तक थी?

सिंधु घाटी सभ्यता का आरंभ लगभग 3300 ईसा पूर्व से माना जाता है और यह सभ्यता लगभग 1300 ईसा पूर्व तक अस्तित्व में रही। इसे तीन मुख्य कालखंडों में विभाजित किया गया है: प्रारंभिक हड़प्पा काल (3300-2600 ईसा पूर्व), परिपक्व हड़प्पा काल (2600-1900 ईसा पूर्व), और उत्तर हड़प्पा काल (1900-1300 ईसा पूर्व) इस सभ्यता का परिपक्व काल इसका स्वर्णकाल था, जब इसके नगर सुव्यवस्थित थे और व्यापारिक गतिविधियाँ अपने चरम पर थीं।

सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल कौन सा है?

सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल राखीगढ़ी है, जो हरियाणा, भारत में स्थित है। यह स्थल लगभग 350 हेक्टेयर में फैला हुआ है और इस सभ्यता के विकास के प्रमुख केंद्रों में से एक था। राखीगढ़ी में खुदाई के दौरान कई महत्वपूर्ण अवशेष मिले हैं, जिनमें मकानों की संरचनाएँ, जल निकासी प्रणाली, और कृषि उपकरण शामिल हैं। यह स्थल मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे प्राचीन नगरों से भी बड़ा है और इस सभ्यता के लोगों के सामाजिक और आर्थिक जीवन की महत्वपूर्ण झलक प्रदान करता है।

सिंधु घाटी के प्रमुख देवता कौन थे?

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मुख्य रूप से पशुपति (शिव का प्रारंभिक रूप) और मातृ देवी (मदर गॉडेस) की पूजा करते थे। उनके धार्मिक प्रतीक चिह्नों में पवित्र वृक्ष, जानवर जैसे सांड, हाथी, और गैंडे की छवियाँ भी शामिल थीं। यह दर्शाता है कि वे प्रकृति और जीवन की विभिन्न शक्तियों को पूजते थे। खुदाई में प्राप्त मोहरों पर पशुपति देवता को योग मुद्रा में चारों ओर जानवरों से घिरा हुआ दिखाया गया है। मातृ देवी की पूजा उपजाऊपन (fertility) और समृद्धि का प्रतीक थी।

सिंधु घाटी सभ्यता के किस शहर में सबसे बड़ा शिलालेख है?

धोलावीरा, जो वर्तमान में गुजरात, भारत में स्थित है, में सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा शिलालेख पाया गया है। इस शिलालेख में 10 बड़े-बड़े चिन्हों का उपयोग किया गया है। यह शिलालेख एक प्रकार का संकेत प्रतीत होता है, जिसका उपयोग संभवतः नगर के प्रवेश द्वार पर किया गया होगा। यह शिलालेख हड़प्पा सभ्यता के लिखने की प्रणाली और उनके सांस्कृतिक जीवन को समझने का एक महत्वपूर्ण साधन है।

सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल कौन सा है?

सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल राखीगढ़ी है, जो हरियाणा, भारत में स्थित है। यह स्थल लगभग 350 हेक्टेयर में फैला हुआ है और इसे हड़प्पा सभ्यता के सबसे बड़े स्थलों में गिना जाता है। राखीगढ़ी की खुदाई से पता चला है कि यहाँ पर लोग कृषि, पशुपालन, और व्यापार में संलग्न थे। यह स्थल इस सभ्यता की उन्नत नगर योजना और समृद्ध सामाजिक संरचना को समझने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

चन्हुदड़ो कहाँ स्थित है?

चन्हुदड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है। यह स्थल मुख्य रूप से अपनी शिल्पकला, जैसे मोहरों (seals), मनकों (beads), और धातु के उपकरणों के लिए प्रसिद्ध है। चन्हुदड़ो एकमात्र ऐसा स्थल है, जहाँ पर किलेबंदी (fortification) नहीं पाई गई है। यह स्थल यह दर्शाता है कि सिंधु घाटी के लोग व्यापार और शिल्पकला में अत्यधिक कुशल थे।

हड़प्पा सभ्यता के सबसे लंबे अभिलेख कौन से हैं?

हड़प्पा सभ्यता के सबसे लंबे अभिलेख धोलावीरा में पाए गए हैं। इन अभिलेखों में 10 बड़े संकेत (signs) का उपयोग किया गया है। यह अभिलेख उस समय के लेखन प्रणाली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, हालाँकि अभी तक इसे पढ़ा नहीं जा सका है। इन अभिलेखों का उपयोग संभवतः धार्मिक, प्रशासनिक, या नगर के प्रवेश द्वार पर सूचना देने के लिए किया गया होगा।


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